________________ 138.. साहित्यप्रेमी मुनि निरंजनविजय संयोजित करता हुआ. धर्म का आचरण करके वह स्वर्ग में गया / : कहा भी है:___ "कोई भी किसी प्राणी के सुख तथा दुःख का कर्ता अथवा हर्ता नहीं है / लोग अपने पूर्व कमों के ही फल का भोग करते हैं।सबुद्धि से यही सोचना चाहिये / कई व्यक्ति श्रेष्ट वचन को सुनकर वणिक् पुत्र के समान अहंकार का त्याग कर सुख को प्राप्त करते हैं। श्रीकेवलीमुनि ने धन गर्वित वणिक-पुत्र की कथा सुनाई: श्रीपुर में धनद नामक एक श्रेष्ठी था उसकी स्त्री का नाम धनवती था। उसके रूपलावण्य से सुन्दर एक पुत्र था उसका नाम लक्ष्मीधर था / जलमार्ग तथा स्थल मार्ग से बहुत से वणिक् पुत्र धन का उपार्जन करने के लिये चारों दिशाओं में जाते थे / परतु लक्ष्मीधर को धनदने अच्छे 2 पंडितों के समीप खूब पढाया / वह शिक्षित होने पर वह सदा देवता और गुरु की आराधना नम्रता पूर्वक करने लगा, जैसाकि शोक तथा संताप दायक भनेक पुत्रों के उत्पन्न होनेसे क्या ? कुल का तो अवलम्बभूत वह एक ही पुत्र भेष्ट है जिससे कुल प्रसिद्ध हो / जैसे वन को एक ही वृक्ष अपने पुष्पों की सुगध से सुगंधित कर देता है उसी प्रकार सुपुत्र कुल को प्रसिद्ध कर देता है। इसके बाद क्रमशः उस धनद की लक्ष्मी भाग्य संयोग से नष्ट हो गई / तथा उसी का चन्द्र नामक पुत्र धनवान हो गया। 卐 सुखदुःखनां कर्ता हर्ता च न कोपि कस्यचिज्जन्तोः / इति चिन्तय सद्बुद्धया पुरा कृतं भुज्यते कर्म // 627||8 / / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust