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________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग 135 नित करके जन्ममहोत्सव मनाया / उस बालक का नाम 'चन्द्र' रक्खा गया / तथा प्रतिदिन क्रमशः बढ़ते हुए उस बालक को पंडितों से विद्याग्रहण कराई और युवावस्था प्राप्त हो जाने पर सूर नाम के राजा की सुन्दर कन्या से उस चन्द्र का विवाह करा दिया। ____एक दिन श्री कमलाचार्य नाम के धर्माचार्य पृथ्वी पर विहार करते २बहुत साधुओं के साथ उस नगर के उद्यान में पधारे / उन आचार्य देव को आये हुए सुनकर धर्म सुनने की कामना से राजा पत्नी तथा पुत्र के साथ वहां गया और प्रणाम करके उनके चरणों में विनय पूर्वक बैठ गया। वहां उसने गुरू चरणों में बैठकर इस प्रकार का उपदेश सुना किः "वृथा जिन्दगी मनुज की-धर्म अर्थ बिन काम / दुर्लभ मानव जन्म में-धर्म सकल सुख धाम // " यह मनुष्य जीवन धर्म, अर्थ, और काम के साधने के बिना व्यर्थ ही है / इनमें भी धर्म सर्व श्रेष्ठ है, क्योंकि अर्थ और काम की प्राप्ति धर्म से ही होती है। कोटि जन्मों में भी दुष्प्राप्य मनुष्य जन्म आदि सब धर्म सामग्रियों को प्राप्त करके संसार रूपी महान समुद्र को धर्म रुपी नौका से पार करने का सतत प्रयत्न करना चाहिये / हरेक प्राणी पुरुषार्थ के बिना कर्मयोग मात्र से ही धीर वणिक् के समान सुख सम्पति को प्राप्त नहीं करते ? केवलीमुनि भगवंत द्वारा धीर वणिक की कथा- . इसके बाद रानाने उस वणिक् की कथा पूछी और वे उस P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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