________________ 134 साहित्य प्रेमी मुनि निरंजनविजय संयोजित ~ ~ ~ ~ उनचालिसवां-प्रकरण “शुद्ध हृदय जन को सदा-स्वप्न शकुन फल देत / भावी सुखदुख सूचना-समझ सुजन लेत // " पाठक गण! गत प्रकरण के अन्दर शुकराज की भाग्य दशा, चन्द्रवती की कपट कला, श्री विमलाचल महातीर्थ पर शुकराज द्वारा पञ्च परमेष्ठी के महामंत्र का जप, इत्यादि सुन्दर वर्णन आपने पढ़ा है। अब इस प्रकरण में शुकराज की अपने राज्य की प्राप्ति, केवली मुनि भगवंत का मिलन, कर्म और उद्योग की बोधदायक चर्चा तथा केवली मुनि द्वारा धन गर्वित वणिक पुत्र की बुद्धि वर्द्धक कथा, इत्यादि वृतांत से पर्याप्त मनोरजन द्वारा ज्ञान प्राप्त करेंगे। शुकराज को पुत्र प्राप्ति शुकराज श्री शत्रुञ्जय तीर्थ में उत्सवपूर्वक यात्रा करके पुनः अपने नगर में आ पहुँचा / एक दिन उसकी प्रथम पत्नी पद्मावती स्वप्न में चन्द्रमा को अपने मुख में प्रवेश करते हुये देखकर जग गई तथा अत्यन्त प्रसन्न हुई / दान शील आदि का जो भी पवित्र (गर्भावस्था की इच्छा) दोहद उसको हुआ राजा ने प्रसन्न चित से उन सबको पूर्ण किया। इसके बाद गर्भ समय पूरा हो जाने पर रानी ने शुभ दिन तथा शुभ मुहू त में सूर्य के समान तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया / राजाने इस खुशी में अन्न पान वस्त्र आदि से अपने स्वजनों को सम्मा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust