________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग 133 " : तब महोदय मुनि कहने लगे कि-"हे शुकराज ! सुनो इस जन्म से बावन भव पूर्व जीवन में तुम राजा थे तथा उस समय तुमने छल करके जिसका राज्य ले लिया था उसीने इस जन्म में छल करके तुम्हारा राज्य ले लिया था / " शुकराज ने पूछा कि "मैंने किसका राज्य पूर्व जन्म में ले : लिया था ?" ___तव मुनीश्वर कहने लगे कि- “यह तुम्हारे मामा राजा चन्द्रशेखर का राज्य तुमने लिया था / " इसलिये कहा है किः-- "किये कर्म का क्षय नहि होवे, भोग विना शत कल्पों में, कर्म क्षय के कारण भव में, भोग नियत अति स्वल्पों में // " कोटि कल्प बीत जाने पर भी किये हुए कर्मों का क्षय नहीं होता / शुभ या अशुभ जो कर्म पूर्व जन्म में किया जा चुका है उसका फल अवश्य भोगना पड़ता है। __. यह सुन आश्चर्य चकित होकर शुकराज ने शीघ्र ही उठकर उस श्री चन्द्रशेखर मुनि भगवंत को प्रणामादि किया। इसके बाद श्री चंद्रशेखर ने अपने किये हुए दुष्ट कर्मों की मन ही मन निन्दा : करता हुआ गिरिराज की पावन छाया में अष्ट प्रकार के कर्मो / का नाश करने वाले केवलज्ञान को प्राप्त किया। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust