________________ 132 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित के लिये उत्सव के साथ चल दिया / स्नात्र पूजा, ध्वजारोहण आदि अनेक शुभ कार्य करके वह संघपति शुक्रराज प्रसन्नत: पूर्वक मन्त्रियों से कहने लगा किः-- 'जप कर मन्त्र इसी पर्वत पर, गर्व किया अरिजन के चूरः / __इसी हेतु शत्रुञ्जय इसका, नाम हुआ जगमें मशहूर / / ' ... इसी पर्वत पर मन्त्रराज नवकार के जप करने से मैंने शत्रु को जीता था। इसलिये इस पर्वत को आज से श्रीशत्रुञ्जय कहो / अर्थात् उसी दिन से इसका नाम तीर्थराज श्री शत्रुञ्जय नाम हो गया। राजा चन्द्रशेखर की दीक्षा व केवलज्ञानः-. ___ इधर चन्द्रशेखर श्री विमलाचल महातीर्थ पर आकर तथा युगाधीश श्रीआदिनाथप्रभु को प्रणाम पूजा आदि करके अपने मन में विचारने लगा कि "मैंने जो अनेक प्रकार के दुष्कर्म किये हैं / 'उन पापों से मुझको निश्चय करके नरक में जाना पड़ेगा।" इस प्रकार मन में विचार करने से उसे वैराग्य प्राप्त हुआ और इसी कारण श्री महोदय मुनि से उसने उसी तीर्थ में भाव पूर्वक दीक्षा लेली। - शुकराज श्रीमहोदय मुनि के समीप आकर भक्तिपूर्वक जीवदया मूलक धर्म का श्रवण करने लगा। देशना के अन्त में शुकराज ने उन मुनिश्वर से पूछा कि- "हे मुनीश्वर ! छल करके मेरा राज्य किसने ले लिया था ?" P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust