________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग 131 ___ जगत में कोई भी अक्षर बिना मंत्र का नहीं है। कोई भी मूल बिना औषध का नहीं है, पृथ्वी अनाथ नहीं है / इन सबकी योजना करने वाले सुज्ञ मनुष्य ही दुर्लभ हैं। इसके बाद शुकराज केवली मुनिको प्रणाम करके तथा 'प्रसन्नता पूर्वक विमान पर आरूढ होकर नवकार मन्त्र की साधना करने के लिये श्री महातीर्थ :विमलाचल पर चल दिया तथा गुरुदेव द्वारा बताई गई विधि से श्रीपंच परमेष्ठी मंत्रराज का जप करता हुआ शुकराज ने गुफा में छै मास बीतने पर अपूर्व तेजके प्रकाश को देखा। ___ इसके बाद शुकराज अपनी दोनों पत्नियों के साथ विमान में बैठ प्रसन्नता पूर्वक अपने नगर की ओर चल दिया। ___इधर कपटी शुकराज को राज्य की अधिष्ठात्री देवी ने कहा कि "आज से तुम्हारा शुकराज का रूप चला जायगा, और अब तुम्हें चन्द्रशेखर का रूप प्राप्त होगा।" __ यह सुनकर चन्द्रशेखर भयभीत होकर शीघ्र नगर से चुपचाप * निकल कर, वन में चला गया / इधर अपनी दोनों पत्नियों के साथ विमान में बैठकर शुकराज नगर में आया और अपने राज्य को संभाल लिया। __सब मन्त्रियों से सम्मानित होने पर तथा स्त्री प्राप्ति संबंधि समाचार पूछे जाने पर उसने सब समाचार कह सुनाये / इसके बाद शुकराज अनेक विद्याघरों के साथ संघ का स्वामी होकर श्रीविमनाचल तीर्थ पर श्री ऋषभदेव प्रभु को प्रणाम करने Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.