________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित मेरा राज्य चला जाय तो यह मेरा दुर्भाग्य है।' कहा भी है कि “यदि करीर (केर) के वृक्ष में पत्र नहीं होते है तो इसमें बसंत का क्या दोष है ? उल्लूक पक्षी यदि दिन में नहीं देखता है तो इसमें सूर्य का क्या दोष ? चातक के मुख में यदि वर्षा का जल नहीं पड़ता है तो इसमें मेघ का क्या दोष ? पूर्व में विधाता ने जो ललाट में लिख दिया है वही प्रमाण है, इसके विपरीत फल नहीं हो सकता।' श्री विमलाचल महातीर्थं पर पंचपरमेष्ठी महामंत्र का जपःशुकराज के द्वारा इस प्रकार अनेक प्रार्थना करने पर श्री मृगध्वज केवली मुनि ने कहाकि 'मोक्ष और सुख का देने वाला श्री विमलाचल नामक महातीर्थ है। इस तीर्थ की गुफा में निर'तर छैः मास तक मंत्रराज पंचपरमेष्ठी का याने नवकार महामंत्र का एकाग्र मनसे स्मरण करो। जिस समय गुफा में महान तेज प्रगट होगा तब शत्रु बिना युद्ध के ही घर चला जायगा / " क्योंकि 'पंच परमेष्टी नमस्कार मंत्र, शत्रुञ्जय पर्वत, गजेन्द्रपद तीर्थ का जल, ये तीनों त्रिलोक में अद्वितीय है। "मंत्र बिना अक्षर नहीं कोई, मूल मात्र औषध शुभ होई, हो न अनाथ जगत् यह जानों, योजक्र जन मिलता नहीं मानों // " म पत्र नैव यदा करीरविटषे दोषो वसन्तस्य किम, ____नोलूको हि विलोकते यदि दिवा सूर्यस्य किं दूषणम् / वर्षा नैव पतन्ति चातकमुखे मेघस्य किं दूषणम्, यत्पूर्व विधिनाललाटफलकेऽलेखि 'प्रमाणं हि तत् / 865 / 8 / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust