________________ . . साहित्यप्रेमी मुनि निरन्जनविजय संयोजित वणिक् की कथा कहने लगे कि 'विश्वपुर' नाम के नग में धीर'. नामका एक अत्यन्त गरीब वणिक् रहता था। उसकी स्त्री का नाम धीरमती तथा पुत्र का नाम धरण था / वे तीनों जंगलसे लकड़ियां लाकर तथा उनको बेचकर उसीसे अत्यन्त कष्टपूर्वक जीवन निर्वाह करते थे / दरिद्रता के पांच भाई हैं--ऋण, दुर्भाग्य, आलस्य, भूख, सन्तान की अधिकतायें तथा दरिद्र, रोगी, मूर्ख, प्रवासी और नित्य सेवा वृत्ति से निर्वाह करने वाला ये पांचों व्यक्ति जीवित भी मृतक के ही समान हैं। कर्म और उद्योग का विवाद - ... एक दिन कर्म और उद्योग दोनों आपस में विशेष रूप से परस विवाद करते थे। कर्म कहता 'मैं ही संसार में सब प्राणियों को सुख सम्पति देता हूँ।' उद्योग बोला कि 'मेरे प्रभाव से ही लोगों को सुख सम्पति प्राप्त होती है।' ____ कर्म ने कहा कि 'मेरी सहायता के बिना तुम अभीष्ट नहीं दे सकते हो।' तुम भी मेरे प्रभाव से ही प्रतिष्ठा को प्राप्त करते हो / जैसे सेवक राजा की सेवा करता है वैसे ही समस्त संसार मेरी सेवा करता है। यदि तुम मेरी सहायता के बिना ही लोगों को इच्छित देते हो तो इस दरिद्र धीर वणिक् को इच्छित दो।' . उद्योग ने लक्षद्रव्य मूल्य का एक मनोहर हार शीघ्र लाकर वनमें धीर को दे दिया। तव प्रसन्न होकर घर जाता हुआ धीर लक्कड़े पर हार को . रखकर जल पीने के लिये सरोवर में गया ............. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust