________________ प्रकरण 38 . . . . . . . . . . . पृ. 117 से 133 शुकराज का यात्रा के लिये गमन मृगध्वज केवली ‘क्षितिप्रतिष्ठित' नगर से विहार कर गये, शुकराजका न्याय से राज्यपालन करते समय पसार होता है, कोई एक दिन महाराजा शुकराज का अपनी दोनों पत्नी के साथ शाश्वत तीर्थो की यात्रा के लिये गमन करना, चन्द्रावती की सूचनानुसार चन्द्रशेखर का शुकराज के सदश रूप धारण करके आना और कपट जाल फेलाना; शुकराज के रूप में राजघुरा हाथ करना, चारण मुनिवर से अष्टापदजी पर धर्म देशना सुन कर देव और गुरुवर को नमस्कार कर शुकराजका अपने नगर के उद्यान में आना. तीर्थयात्रा करके जब शुकराजको अपनी पत्नीयां सह वापस आया देखा, तब कपटी चन्द्रशेखर द्वारा मंत्री को असली शुकराज को वापस जाने के लिये कहेने भेजता. शुकराज और मंत्री का वार्तालाप-भाग्य-कर्म की विचित्रता मानकर, शुकराज अपनी पत्नीयां सह वहां से रवाना होता है, और आकाश में विमान रुख जाता है वहां मार्ग में केवली भगवान-पिता मुनि का मिलन होता, केवली मुनिकी धर्मदेशना, श्री विमलाचल महातीर्थ की गुफा में छ मास तक नमस्कार महामंत्री का जाप-साधना करने जाने के लिये कहना, श्री केवली मुनि के कथनानुसार महातीर्थ पर जाप करते गुफा में प्रकाश होना-शुकराज का पुण्य प्रगट होना, चन्द्रशेखर को देवीने कहा, 'आज से तमारा शुकराज रूप चला जायगा,' यह सुनकर चन्द्रशेखर का भयभीत होना और वहांसे चले जाना. असली शुकराज का आना. मंत्रीयों द्वारा सन्मानित होना, अपना राज्य सभालना. दिनों के बाद अनेक विद्याधर आदि चतुर्विध के साथ उत्सव सहित महातीर्थ श्री विमलाचल पर यात्रार्थे आना, उस महातीर्थ का 'श्री शत्रुजय' नया नाम जाहेर करना. ___ भटकते भटकते चन्द्रशेखर का महातीर्थ पर आना, पाप का पश्चाताप होना. वैराग्य प्राप्त कर श्री महोदयमुनि के पास दीक्षा ग्रहण करनी और P.R.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust