________________ यात्राकर के अपने नगर प्रति जाना और उत्सव के साथ नगर प्रवेश करना. दिनों के बाद यकायक सारंगपुर के वीरांगद राजा का पुत्र सुरकुमार को हंसराज के साथ युद्ध करने आना. उस युद्ध में सुर का बेहोस होना और हंसराज उस की शीतवायु आदि द्वार शुश्रुषा करता है. युद्ध कारण पूर्व का वैरभाव जानना और परस्पर क्षमा प्रदान करना. प्रकरण 37 . . . . . . . . . . . पृ. 100 से 116 श्रीदत्त केवली के द्वारा सुर का पूर्वजन्म कथन श्रीद-त केवली द्वारा सुना हुआ गत जन्म का कथन, सुरकुमार सबके आगे कहता है, हंसकुमार और सुरकुमार का द्वेषका कारण सब जन जानने पाते है, गत जन्म में सिंह मत्री द्वारा चरक सेवक को पीटा जाना, चरक का जीवका श्रीजिन पूजा के प्रभाव से सुरकुमार होना, इत्यादि वृ-तान्त सुनकर लोग विस्मय हुए, उतने में वहां एक बालक का आना, मृगध्वज राजा को प्रणाम करना, उस से राजा पूछते है, तुम कौन हो ? इसी बिच आकाशवाणी होती है, बालक के साथ राजा मृगध्वज का कदली वन में योगिनी के पास जाना, उस के द्वारा चन्द्रावती के पुत्र का परिचय पाना, चन्द्रशेखर को कामदेव का वरदान, कैसे मिला और चन्द्रावती का दुष्कृत्य और यशोमती का परिचय, चन्द्रांक से यशोमती की कामाभिलाष, उस का योगिनी होना, यह सब वृतान्त जान कर मृगध्वज का मन उदास होना, शीघ्र ही दीक्षा का अभिलाष होना तथापि मत्रीयों के आग्रह से नगर में जाना, शुकराज को उत्सवसहित राज्य-आरोहन करा देना. गृहस्थ-अवस्था में ही शुभ भावना के योग से मृगध्वज राजा को रात्री में केवल ज्ञान प्राप्त होना, देवतादि के द्वारा केवल ज्ञान का महोत्सव करना, राणी कमलमाला, हंसराज और चन्द्रांक आदि का दीक्षा ग्रहण करना, चन्द्रावती का राज्याधिष्टायीका को प्रसन्न करना और चन्द्रशेखर के लिये शुकराज का सारा राज्य मांगना, देवी द्वारा समय की राह देखने के लिये कहना. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust