________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरंजनविजय संयोजित ~ - इधर शुकराज शून्य हृदय होकर आकाश मार्ग से स्थान स्थान - में भ्रमण करता हुआ दोनों पत्नियों द्वारा प्रेरित होने पर भी लज्जावश अपने श्वसुर के घर पर नहीं गया / कहा भी है किः.. "उतम व्यक्ति अपने ही गुणों से जगत् में प्रसिद्धि को प्राप्त करते हैं और मध्यम पुरुष पिता के गुणों द्वारा जगत् प्रसिद्ध होते हैं। अपने मामा के गुणों द्वारा प्रसिद्ध होने वाले व्यक्ति अधम कहे जा सकते हैं और अपने श्वसुर के गुणों द्वारा प्रसिद्ध होने वाले व्यक्ति अधम से भी अधम कहे जाते हैं। . इसके बाद प्रसन्न मुखवाला शुकराज कम के फल की चिन्ता करता हुआ, घूमते घूमते छ महिनों के बाद सौराष्ट्र देश में पहुँच गया / "जिसको सम्पति रहने पर हर्ष नहीं हो, विपत्ति में विषाद न हो, रण में धैर्य धारण करने वाला हो, इस प्रकार के तीनों भुवन के तिलक समान पुत्र को कोई विरली माता ही जन्म देती है।" शुकराज का अपने पिता केवली मुनि से मिलनः-- .. एक दिन आकाश मार्ग से जाता हुआ अपने विमान को अचानक रूका देखकर शुकराज सोचने लगाकि 'मेरे जलेहुए घावपर यह एक क्षार और कहां से आ पड़ा ?' जैसे लगे हुए स्थान पर अवश्य करके चोट लगा करती है तथा घर में धान्य का नाश होने से जठराग्नि भी प्रदीप्त हो जाती है अर्थात् दुकाल में ॐ उत्तमाः स्वगुणैः ख्याता मध्यमास्तु पितुर्गुणैः / अधमाः मातुलै ख्याता श्वसुरैश्चाधमाधमाः // 51 // 8 / / __P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun.Gun Aaradhak Trust