________________ 126 विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग क्या करना चाहिये / चन्द्र का बल, ग्रह-बल, पृथ्वी का बल ये सब तब तक ही सहायक होते हैं, तथा तब तक ही सब लोगों का अपना सब अभीष्टसिद्ध होता है, मनुष्य तब तक ही सज्जन रहता है, तथा मन्त्र-तन्त्र आदि का प्रभाव और पुरुषार्थ तब तक ही काम देता है जब तक कि मनुष्यों का पूण्य बलवान रहता है / पुण्य के क्षय हो जाने पर सब कुछ नष्ट हो जाय करता है / ' "ब्रह्मदत्त को अन्धता, भरत राजा का जय, कृष्ण का सर्वनाश, अन्तिम श्री जिनेश्वर देव का नीचकुल में उत्पन्न होना, मल्लीनाथ में स्त्रीत्व, नारद का निर्वाण, चिलातिपुत्र को प्रशम भावना की प्राप्ति आदि इन सब उदाहरणों से यह सिद्ध होता है कि अतुल बलशाली कर्म और पुरुषार्थ स्पर्धा से परस्पर विजय प्राप्त करते हैं।" "तुलसी रेखा कमकी, ललाटमें लिख दीन, का पूर्व जन्म पूण्य पापमें, अखिल जगत अधीन // ". - यदि मैं इस राजा को मारकर बल पूर्वक राज्य लेने लूगा तो लोग परस्पर अनेक प्रकार से बोलेंगे कि यह दुष्ट मृगध्वज राजा के पुत्र को मारकर राज्य लेकर बैठ गया है लोकापवाद बहुत बलवान होता है। क्योंकि 'चित्त चित्त में बुद्धि भिन्न भिन्न होती है तथा प्रत्येक कुण्ड में जल भिन्न भिन्न स्वाद वाला होता है, . प्रत्येक देश में विलक्षण. आचार होता है। प्रत्येक मुख में भिन्न भिन्न प्रकार की वाणी होती है / ' सारिका शुक सर्प हाथी, सिंह मुख झट बंद हो, मनुज मुख को बंद करने काम से बहु फंद हो / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust