________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित * तब पद्मावती तथा वायुवेग कहने लगी कि 'यही मृगध्वज राजा के पुत्र शुकराज हम दोनों के स्वामी है / . मंत्री से परस्पर वार्तालाप___ तब पुनः मंत्री बोला कि 'आप दोनों मिथ्या क्यों बोलती हैं ?' क्सिी ने ठीक ही कहा है कि:---. "मिथ्या माया मूढ़ता, साहस रहित विवेक / निर्दयता अपवित्रता, नारी दोष अनेक / / " . 'मिथ्या, कथन, साहस, माया, मूर्खता, विवेकशून्यता, अपवित्रता, निर्दयता ये सब दोष स्त्रियों में स्वभाव से ही रहते हैं / राजा लोग समीप में रहने वाले मनुष्य क. विशेष जानता है, चाहे वह विद्या रहित, नीच कुल में ही' उत्पन्न, एवं अपरिचित ही क्यों न रहे क्योंकि राजा; स्त्रियां और लतायें आदि ये सब जो समीप में रहता हैं उसको लपेट लेते . हैं और उसका ही आलम्बन करते हैं / अश्व, शस्त्र, शास्त्र, वीणा, वाणी, मनुष्य, स्त्री ये सब आश्रित पुरूष के अनुसार ही योग्य अथवा अयोग्य हुअा करते हैं।' के - शुकराज द्वारा कर्म की विचित्रता को चिंतवन-- ... मन्त्रीकी ये सब बातें सुनकर शुकराज. सोचने लगाकि किसीने मेरा स्वरूप धारण करके मेरा राज्य ले लिया है। अब के अश्वः शस्त्र शास्त्र वीणा वाणी नरश्च नारी च / पुरुषविशेष प्राप्ता भवंत्ययोग्याश्च // 833 ॥स.॥ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust