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________________ 124 ... विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग में आप हमारे स्वामी की पत्नियोंका हरण कर के दूर चले गये। थे; अब क्या आप मेरे स्वामी का राज्य लेने के लिये आये हो ? क्या तुम नहीं जानते कि 'पर स्त्री हरण करने से घोर नरक को देने वाला महा पाप होता है, क्योंकि ऐसा कहा है कि "प्राण को सन्देह में देने वाला अत्यन्त शत्रु भाव का कारण तथा इह लोक और परलोक दोनों जन्म दुःख रूप परस्त्री गमन अवश्य त्याग करना चाहिये / " पर स्त्री गामी पुरूष इहलोक में सर्वस्व हरण, बन्धन, शरीर के अवयवों का छेदन आदि दुखों को प्राप्त करता है तथा प्राण त्याग करने पर परलोक में घोर नरक को प्राप्त करता है। किसी व्यक्ति के प्राण लेने में मरने वाले को एक क्षण ही दुःख होता है परन्तु किसी के धन का हरण कर लेने से उसको पुत्र पौत्रादि सहित जीवन पर्यन्त दुःख होता है। 'उस मंत्रीकी इस प्रकार की बातें सुनकर आश्चर्य चकित . होता हुआ शुकराज कहने लगा कि "ये सब उपदेश आप अपने स्वामी को देवें; इस नगरका स्वामी शुकराजमें ही हूँ।" . यह सब सुनकर मंत्री पुनः कहने लगा कि 'आप इस समय इस प्रकारकी मिथ्या बातें क्यों बोलते हैं ? मृगध्वज राजा का पुत्र शुकराज अभी नगर में विद्यमान है; इसलिये आप यहांसे शीघ्र . दूर चले जाइये, अन्यथा मृत्युको प्राप्त हो जायेंगे, आप कितना ही बोलें परन्तु आपको यहां मानने के लिये कोई तैयार न होगा। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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