________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 123 . सत्य शकराज का उद्यान में आगमन-- "दुनिया कहे मैं दोरंगी, पल में पलटी जा; सुख में जो सोइ रहे, वांको दुःखी बनाउ॥" तब खिड़की में बैठा हुआ चन्द्रशेखर उद्यान में आये हुए शुकराज को देखकर अपने मन्त्रियों से कहने लगाकि "जो विद्याधर मेरी स्त्रियों को आकाशगामिनी विद्या सहित हरण कर ले गया था वही मेरा स्वरूप धारण करके बाहर उद्यान में पुन आया है तथा स्त्री को वश करने वाली विद्या से स्त्रियों को भी अपने वश में कर लिया है / इसलिये वे सब इसका ही पक्षपात करती है। अब यह दुष्ट मेग राज्य ले लेगा।" इसलिये आप लोग इसको इच्छित वस्तु देकर शीघ्र यहां से हटादो / क्योंकि 'शत्रुको बलवान् समझकर अपनी आत्मा की रक्षा करनी चाहिये / परन्तु जो स्वयं बलवान हो तो शरद् ऋतु के चन्द्र के समान शीतलता धारण करना चाहिये / बुद्धि से किया गया कार्य जिस प्रकार शीघ्र सिद्ध होता है, उसी प्रकार से अस्त्र, हाथी, घोड़े, तथा सेना से नहीं होता राजा प्रसन्न होकर नौकर को धन देता है। नौकर इस सन्मान के कारण अपने प्राणों से भी स्वामी का उपकार याने रक्षण करता है / जैसे चक्र का अारा नाभी को धारण करता है, तथा आरा नाभी में स्थिर रहता है। उसी प्रकार का स्वामी और सेवक में परस्पर व्यवहार रहता है।' इसके बाद बुद्धिवन नाम का मन्त्री नगर बाहर के उद्यान में जाकर तथा उसको देखकर आश्चर्य चकित होकर मधुर वाणी से कहने . लगाकि "हे विद्याधर ! मैं आपके सब सामर्थ्य देखलिया है; पूर्व Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.