________________ * 122 विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग हुई धर्म की सामग्री का परित्याग करके इधर-उधर भोग की इच्छा से दौड़ते फिरते हैं।" इस प्रकार की धर्म देशना सुनकर तथा मुनि भगवंत एवं देवों को प्रणाम करके वहाँ से अपनी स्त्रियों के साथ श्वसुर के घर पर गया। तथा वहां तीन दिन रहकर पुनः वहाँ से शुकराज चल दिया। क्योंकिः "श्वसुर कुल में वास करना स्वर्ग के सम जानिये, किन्तु तीन या चार दिन ही पांचे अति मानिये, लोभ में फंस मिष्ट मधुरों के अधिक दिन जो रहें - वह खरा खर है अधम पशु नीच उसको सब कहे" * “यदि मनुष्य तीन पांच अथवा सात दिन रहे तो श्वसुर के गृह में निवास स्वर्ग तुल्य होता है। परन्तु यदि मिष्टान्न आदि के लोभ से अधिक दिन रह जाय तो सन्मान कम हो जाता है और खिचड़ी आदि साधारण अन्न मिलने लग जाता है / इससे सुसराल में ज्यादा समय तक रहना अनुचित है / यह बुद्धिमानोंका मन्तव्य है। इस तरह विचार कर शुकराज विमानसे शीघ्रता से चलता हुआ उदयाचल पर्वत पर सूर्य के समान अपने नगर के उद्यान में आया। श्वसुरगृह निवासःस्वर्ग तुल्योनराणाम, यदि वसति दिनानि त्रीणि वा पंच सप्तः / अथ कथमपि तिष्ठेन्मृष्ट लुब्धो वराको, निपतनि खत्तु पापे काजिकं क्षिप्रयुक्तम् , / / 810 // 8 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust