________________ साहित्यप्र मी मुनि निरज्जनविजय संयोजित राज कुल में विश्वास उत्पन्न करके राज्य करने लगा / इसलिये कहा है कि बिना छल-कपट किये कोई किसी के धन का हरण नहीं कर सकता / जैसे बगुला धीरे धीरे चलता हुआ मछलियों को पकड़ लेता है तथा जो अनेक प्रकार की माया रचकर के दूसरों को ठगते हैं वे महा मोह के मित्र होकर स्वर्ग और मोक्ष के सुखों से स्वयं ही वंचित रहते हैं। इसके बाद देवीके प्रभावसे शुकराजरूप धरी वह चन्द्रशेखर सच्चे शुकराज के समान समस्त प्रजा का पालन करने लगा तथा गुप्त रूप से चन्द्रवती के साथ प्रेम करता हुआ वह . चन्द्र शेखर माया का घर बन गया / चारण मुनि की श्री अष्टापदतीर्थ पर धर्म देशना इधर शुकराज शाश्वत् श्री जिनेश्वरदेवोंको प्रणाम करता हुआ श्री अष्टापद तीर्थ में गया / वहाँ स्वयं चौबीस जिनोंको भक्ति-भाव से प्रणाम किया। तथा वहाँ आकाशचारी चारण मुनि से संसार रूपी समुद्रमें नौका के समान-इस प्रकारकी धर्मदेशनाको सुनने लगा कि "जो मूर्ख इस अत्यन्त अलभ्य मनुष्यत्व को प्राप्त करके प्रयत्न पूर्वक धर्म नहीं करता है वह अत्यन्त कष्ट से प्राप्त चिन्तामणि को प्रमाद कर के समुद्र में गिरा देता है तथा कल्पवृक्ष को काट कर गृह में धतूरे के वृक्ष को लगाता है / चिन्तां . मणि का त्याग करके काँच के टुकड़े को ग्रहण करता है / अथवा. पर्वत के समान हस्ती को बेचकर गधे को खरीदता है जो प्राप्त P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust