________________ 118 विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग होता है। जिनमंदिर जाने के लिये खडा होता है, तब उसे छठ-दो उपवासका फल प्राप्त होता है और उस मंदिरके रास्ते पर चलने से अष्ठम-तीन उपवासका फल प्राप्त होता है और उसी मार्गमें जो श्रद्धा से चलता है तो उसे दशम-चार उपवासका फल प्राप्त होता है। चलते-चलते मदिर के पास आने से द्वादशम-पांच उपवासका फल प्राप्त होता है और जिनमंदिर में प्रवेश करने से पाक्षिक-पन्द्रह उपवास का फल प्राप्त होता है / जिनमंदिर में जाकर श्री जिनेश्वर प्रभुके दर्शन करने पर एक मासोपवास का फल प्राप्त होता है, प्रभुजी के दर्शन से कई-गुण अधिक पुण्य जिन पूजा में होते है और कोटिबार जिन पूजा करने से जो पुण्य होता है, इससे कोटि गुणा अधिक पुण्य स्तुति-स्तोत्र पाठ करने से होता है। स्त्रोत्र से कोटिगुणा पुण्य शुद्धमन से जाप करने से होता है, जाप से कोटि गुणा पुण्य प्रभुजीका मनमें निर्मल ध्यान करने होता है, और ध्यान से कोटिगुण पुण्य प्रभुजी के ध्यानमें एकाग्रचित्त हो तन्मय होने से होता है।' इत्यादि शास्त्र कथन बतलाकर शाश्वत तीर्थों की यात्रा और दर्शनों के लिये साथ ले जाने की अत्यन्त इच्छा दोनों पत्नियोंने बताई। ___इस प्रकार उन दोनोंकी उत्कट इच्छा देखकर शुकराजने मंत्रियों से कहा कि “मैं अभी तीर्थ यात्रा के लिए जाऊंगा, इस लिए जब तक मैं यात्रा करके न लौट आऊ तब तक आप लोग प्रयत्नपूर्वक राज्यकी रक्षा करें।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust