________________ साहित्य प्रेमी मुनि निरंजनविजय संयोजित अडत्तीसवां प्रकरण माया जाल पसार कर नारी करती खेल / देखो नाटक आज यह 'चन्द्रा' 'शेखर' मल / / पाठक गण! गत प्रकरण में सूचित महाराजा शुकराज का तीर्थयात्राके लिए प्रस्थान करना, और चन्द्रवती के द्वारा अपने भाई चन्द्रशेखरको शुकराजका रूप धारण करवाना, तथा स्त्रीचरित्र द्वारा कपट पूर्ण नाटक करना, इत्यादि रोमांचकारी वर्णन इस प्रकरणमें आपको मिलेगा। शुकराज का यात्रा के लिये गमन____ इसके बाद एक दिन शाश्वत् तीर्थों पर के श्री जिनेश्वर देवों को प्रणाम करने जाने के लिये शुकराज चलने लगा, तब पद्मावती और वायुवेगा उसकी दोनों स्त्रियां कहने लगी कि 'हम दोनों भी इस समय आपके साथ साथ यात्रा के लिये चलें जिससे हम दोनों को भी शाश्वत जिनेश्वरदेवों के दर्शन व प्रणाम करने से पुण्य प्राप्त होगा' श्री जिनेश्वर देवोंका जन्म-स्थान, दीक्षा-स्थान, केवलज्ञान उत्पति स्थान और मोक्ष गमनका स्थान इत्यादि स्थानोंको वन्दन करना उत्तम प्राणियोंका परम कर्तव्य है, क्योंकि शास्त्रमें कहा भी है:-'मैं प्रभुजी के दर्शन के लिये जिनमन्दिरमें जाऊ।' इस प्रकारका प्रतिदिन ध्यान व विचार करने वाले को चतुर्थ-भक्त एक उपवास का फल प्राप्त P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust