SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 114 विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग देवता आदि के द्वारा केवलज्ञान का महोत्सव इसके बाद राजाने देव प्रार्थना से जब मुनिवेष धारण कर लिया तब देव तथा मनुष्योंने उन केवली मुनिको प्रणाम करके केवलज्ञानकी प्राप्तिका महान् महोत्सव किया, बाद में राजर्षी ने संसाररूप सागरसे पार करने में नौका के समान धर्मका उपदेश बहुत मधुर भाषामें दिया / जैसे शरीर में आरोग्य अनित्य है, युवावस्था भी अनित्य है / इसी प्रकार ऐश्वर्य और जीवन भी अनित्य है, तथापि परलोक के साधन में लोग उदासीन भोव रखते हैं, यह मनुष्यों का व्यवहार आश्चर्य कारक है / सूर्य के आगमन और गलन से प्रतिदिन आयु का क्षय होता है / संसार के अनेक कार्यों के बड़े भार से तथा सतत व्यवहार में लगे रहने के कारण समय का ज्ञान नहीं होता है। जन्म, वृद्धावस्था विपत्ति, मरण और दुख ये सब देखकर भी प्राणियों को भय नहीं होता। क्योंकि मोह रूपी प्रमाद की मदिर। का पान करके . संसोर में प्राणियों को सुख की भ्रांति है। जैसे छोटे बालकों को / अंगूठे को अपने मुह में रखने से स्तन का भ्रम होता है / यही अज्ञान दशा है। र धर्मोपदेश के बाद में हंसराज और चन्द्रांक के साथ कमलमाला ने भी उन राजर्षि के समीप शीघ्र व्रत को ग्रहण किया / तथा आदि से अन्त तक चन्द्रवती का सब दुष्ट वतान्त : जानते हुए भी वे राजर्षि मगध्वज तथा चन्द्रांक किसी के आगे नहीं बोले / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy