________________ ___. साहित्यप्रेमी मुनि निरंजनविजय संयोजित 113 'रागवान् व्यक्तियों को वन में भी दोष लगता है / घर में भी पांच इन्द्रियों को वश करना तप ही कहा गया है / जो निन्दित कर्मों में प्रवृत नहीं होता तथा राग से रहित है उसके लिये घर . भी तपोवन है।' गृहस्थ-अवस्था में ही मृगध्वज राजा को केवल ज्ञान.मंत्रियों के इस प्रकार समझाने पर राजा मृगध्वज चन्द्रांक के साथ घर आया / उसको देखकर चन्द्रशेखर शीघ्र ही अपने नगरको चल दिया। इसके बाद राजाने उत्तम उत्सव करके शुकराज को राज्य दे दिया तथा सप्त क्षेत्रों में द्रव्यका व्यय करता हुआ नगरमें अट्ठाई महोत्सव किया। इसके बाद सब . विषय वासनाको त्याग करके प्रातःकालमें व्रत ग्रहण करूगा, इस प्रकार की भावना हृदय में करते हुए तथा कर्म समूह का त्याग किये हुए और शुभध्यान में लीन राजा को रात्रि में समस्त संसार को प्रकाशित करने वाला केवलज्ञान उत्पन्न हो गया / प्रभात में स्वर्गसे देवता लोग आकर उस राजासे कहने लगेकि 'हे राजन् ! अब मुनि वेष को धारण करो। हम सब तुम्हारे चरणों की वन्दना करेंगे।' इसलिये ठीक ही कहा है कि 'समता के आलम्बन करने से आधे क्षण में ही सब कर्म नष्ट हो जाते हैं। जिन कर्मों को मनुष्य कोटि जन्मोंमें तीव्र तप करके भी नहीं नष्ट कर सकते, / दान दारिद्रयका नाश करता है। शील दुर्गतिका नाश करता है / बुद्धि अज्ञानका नाश करती है। शुद्ध भावना संसार सेमुक्त करा देती है। . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust