________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरंजनविजय संयोजित विचार कर तथा उसकी वाणी का अनादर करके चन्द्रांक वहां से अपने मातापिता के चरणों के दर्शन के लिये चल दिया / इस प्रकार यशोमती दोनों ओर से भ्रष्ट होकर हृदयमें विषाद करती हुई संसार के सम्बन्ध का त्याग करके योगिनी होगई / हे राजन् ! मैं वही यशोमती हूँ और मैंने धर्म ध्यान के प्रभाव से अवधिज्ञान को प्राप्त कर लिया है। तुम्हारी स्त्री को सब . समाचार मैं जानती हूं / हे मृगध्वज ! यक्षने आकाशवाणी द्वारा तुमको अपनी स्त्री का समाचार जानने के लिये मेरे पास भेजा है। इन सब बातों से राजाको अत्यन्त क्रोध उत्पन्न हुआ / पर योगिनी उसे-शिष्ट एवं मधुरवाणी से कहने लगी कि: "पुत्र मित्ता हुई अनेरा, नरह नारि अनेरी, मोहई मोहियो मूढ, जपई मुहिआ मोरी मोरी। अतिह गहना अतिह अपारा संसारसायर खारा। बूज्झउ बूज्झउ गोरख बोलइ सारा धम्म विचारा // 745 / / 8 / / कवण केरा तुरंग' हाथी कवण केरी मारी / नर किं जातां कोई न राखए हीअडइ जोइ विचाग / / 746 / / 8 / / क्रोध परिहरि मान मन * करि माया लोभ निवारे / अवर वइरि मनि म आणे केवल आपु तारे / / 747 // 8 // " 'मनुष्य को पुत्र तथा मित्र अनेक हुआ करते हैं / स्त्रियां भी अनेक होती हैं। ये सब मनुष्य को मोहित कर देते हैं। मोहित हो करके मूर्ख लोग ये सब 'मेरा मेरा' बोलते रहते हैं / परन्तु Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri: M.S.