________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग है / तथा अमूढ (चतुर) होकर चित्त को मूढ़ बना देती हैं। तब यशोमती कहने लगी कि 'हे बालक ! मैं तुम्हारी माता नहीं हूं / तुम्हारी माता मृगध्वज की स्त्री चन्द्रवती है। मेरे तुम्हारे बीच में माता पुत्र का संबंध नहीं है / इसलिये तुम अपने द्वारा मुझको तृप्त करो।' __उसकी बात सुनकर चन्द्रांक अपने मन में विचारने लगा कि अहो ! ब्रह्मा ने इस प्रकार की दुष्ट आशय बाली नारियों को क्यों बनाया है / क्यो किः रानी यशोमति का योगिनी होना... "अच्छे कुल में भी उत्पन्न हुई कामिनी स्त्रियां कुल में कलंक लगाने वाली होती हैं / जैसे सोने की बनाई सांकल भी बन्धन को देने वाली होती है / इसमें कोई संदेह नहीं है।' "कुलजा हो या सुन्दरी, कुल कलंक की मुल / बेड़ी सोना की बनी, नारि स्वर्ग प्रति कूल // " राजा कीपत्नी, गुरू की पत्नी, मित्र की पत्नी, अपनी माता और अपनी पत्नी की माता, ये पांचों माता ही के समान मानी गई हैं। यह स्त्रियों का चरित्र विचार कर तथा उसकी वाणी का अनादर * कामं कुलकल काय कुल जातपि कामिनी / शृखला स्वर्ण जाता हि बन्धनाय न संशयः ।।७३८।।सद _ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust