________________ साहित्यप्रेमी मुनि निजनविजय संयोजित 106 अपनी इष्ट सिद्धि के लिये चन्द्रशेखर अदृश्य विद्या से चन्द्रबती के समीप गुप्त रूप से रहने लगा। द्रांक से यशोमती की काम अभिलाषा इघर प्रतिदिन अत्यन्त क्रान्तिमान् बालक को बढ़ते हुए देखकर यशोमती इस प्रकार विचारने लगी कि 'मैं कभी भी अपने पति का मुख नहीं देख सकती है। इसलिये पालन किये हुए इस शिशु रूपी वृक्ष का ही फल ग्रहण करू / ' ये सब बातें अपने मन में विचार कर यशोमती चन्द्रांक से कहने लगी कि 'यदि तुम मेरी ओर देखो तो मैं राज्य के साथ तुम्हारी आज्ञाकारी हो जाऊगी।' कामदेव के लिये कहा है कि:- "जिसकी आज्ञा, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, तथा स्वर्ग के अधिपति इन्द्र भी शिरोधार्य करते हैं / वह उत्तम वीर समस्त संसार को जीवने बाला तथा विषम-बाण माला कामदेव किस धैर्यवान् व्यक्ति को भी चंचल नहीं करता ?" - यशोमती की इस प्रकार की अनुचित बातें सुनकर वज्र से आहत हुए के समान दुःखी होकर शीघ्र ही चन्द्रांक कहने लगा कि हे माता! तुम इस प्रकार की अनुचित बातें क्यों बोल रही हो। वास्तव में स्त्रियाँ स्वयं रक्त नहीं होने पर भी वित्त को रक्त (रागयुक्त) कर देवी है / स्निग्ध नहीं होने पर भी चित्त को स्निग्ध कर देती . Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.