________________ 108 - विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग wwwwwwwwwwww - बाद में चन्द्रशेखर ने भक्ति पूर्वक कामदेव की आराधना की। तथा प्रेम के कारण चन्द्रवती के लिये याचना की। कामदेव ने प्रसन्न होकर उसको अदृश्य होने वाला काजल दिया और कहा कि 'जब तक मृगध्वज महा० चंद्रवती के पुत्र को नहीं देखेगा तब तक तुम इस अजन से अदृश्य रहोगे। जब राजा मृगध्वज चंद्रवती के पत्र को देखेगा तब मैं चंद्रवती के पुत्र का वृत्तान्त कह कर अपने स्थान को चल दूंगा," तब वह चंद्रशेखर प्रसन्न होकर नेत्रों में वह अब्जन लगा करके अदृश्य शरीर होकर चंद्रवती के समीप चला आया, और चंद्रवती को देव से दिये हुए वर का समाचार कहा, और कहा कि अब क्या करना चाहिये / .. तब चंद्रवती ने कहा कि मैं गर्भ को गुप्त रूप से रख रही हूँ। यदि प्रातःकाल पुत्र का जन्म हो जायगा तब क्या होगा ?'' चंद्रशेखर ने उत्तर दिया कि 'उत्पन्न होते ही तुम्हारे पुत्र को मैं गुप्त रीति से लेकर मेरी स्त्री यशोमती को दे दूंगा, फिर हम दोनों सुख पूर्वक काम सुख में लीन होकर इसी अंतपुर में रहेंगे, कोई मुझको देखेगा भी नहीं।" ये सब विचार करके तथा यक्ष के प्रभाव से चन्द्रवती के पुत्र को लेकर यशोमती को दे दिया, तथा कहा कि "मृगध्वज की स्त्र चन्द्रबती का चन्द्रांक नाम का यह श्रेष्ठ पुत्र है / इसको धर्म के लिये पुत्रवत् पालन करना।" इस प्रकार कह कर पुनः P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust