________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरन्जनविजय संयोजित 107 व्रता स्त्रो थी। हिमवान क्षेत्र से एक युगल (स्त्री पुरुष) पूर्व भव में स्वर्ग को गया / पश्चात स्वप्न में सूचना देकर भानुमती के गर्भ में प्रवेश किया / क्योंकि ( युगलिक जीव पुनः निश्चय पूर्वक देवगति में जाते हैं तथा अपनी अवधि के समाप्त होने पर ऐश्वर्यवानों के घर में आते हैं ) इसके बाद अपने गर्भ की अभिलाषा को पूर्ण करती हुई, समय पूर्ण होने पर भानुमती ने पुत्र तथो पुत्री रूप में अत्यन्त मनोहर दो सन्तानों को जन्म दिया। तब राजा ने उत्तम उत्सव करके पुत्र का नाम चन्द्रशेखर तथा पुत्री का नाम चन्द्रवती रखा / वे दोनों क्रमशः बढ़ते हुए परस्पर जाति स्मरण ज्ञान हो जाने के कारण प्रेम से युगलिक की तरह परस्पर लग्न करने इच्छा करने लगे, इसी बीच में सोमराजा ने तुम्हारी चन्द्रावती के साथ शादी की तथा चन्द्रशेखर का यशोमति के साथ विवाह कराया। चन्द्र शखर को कामदेव का वरदान जब तुमको 'शुक' पोपट माया-छल करके गांगलि ऋषि के आश्रम में ले गया तब तेरी पत्नी चन्द्रवती अपने पूर्व मनोरथ को सिद्ध करने के लिये तथा तेरे राज्य को हड़प कराने के लिये चन्द्रशेखर को बुला कर ले आई थीं। बाद में उसी समय तुम वहां से लौट आये तब उसने अनेक प्रपच करके तुम्हारे से ठगाई की। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust