________________ कहना. मदिर नामक गाँव में सोमश्रेष्ठि था, उसकी पत्नी सोमश्री, पुत्र श्रीदत्त, सूर्यकान्त राजा द्वारा सोमश्री का अपहरण होना, पत्नी को छुडाने के लिये श्रेष्टि का प्रयत्न व निष्फलता, धन लेकर कोई राजाकी सहाय के लिये जाना. पिता के जाने के बाद धनोपार्जन के लिये मित्र शंखदत्त के साथ श्रीदत्त का परदेश प्रयाण. समुद्र मार्ग से आगे बढते मार्ग में समुद्र के बिच एक पेटी देखनी, धीवर-नाविक द्वारा समुद्र से पेटी निकालवाना, उस पेटी में से एक कन्या का निकलना, उस कन्या के बारे में दोनों मित्रो में परस्पर विवाद, श्रीदत्त द्वारा शंखदत्त को छल से समुद्र में फे कना, कन्या को लेकर सुवर्ण कुल नगर में जाना, वहां के राजा को भेट धरना, राजा द्वारा कर-टेक्स माफ होना, उस राजा की स्वर्ण रेखा चामरधारिणी और पेटीवाली-कन्या को साथ लेकर बन में जाना. एक चंपा के वृक्ष निचे तीनों का बेठना, परस्पर मनोरंजन करना, उतनेमें वानर का वहां आना और मनुष्य भाषा में विस्मयकारक बोलना तथा वानर द्वारा स्वर्ण रेखा को उठा जाना, वन में ज्ञानीमुनि से श्रीदत्त की भेट, उन से वृतान्त पूछना. वानर के शब्दो का रहस्य पाना, माता का पूर्व वृ-तान्त जानना, स्वर्ण रेखा की राजा द्वारा खोज व श्रीद-त को केद करना-शूली की शिक्षा. उद्यान में ज्ञानीगुरु मुनिचन्द्रजी का आगमन, राजा का वहां जाना गुरुदेव द्वारा धर्मोपदेश, स्वर्ण रेखा को लेकर वानर-व्यतर का आना. ज्ञानी गुरु द्वारा श्रीद-त और शंखद-त का पूर्व जन्म कथन, यकायक शखद-त का भी वहां आ पहुचना, परस्पर मिलन व क्षमायाचना. शुकराजने गुरु वंदना कर केवली मुनि से पूछा, 'गत भव को प्रिया थी वे ही इस समय माता व पिता है, उस को मैं तात या माता किस प्रकार कहुँ ? ' गुरुदेवने कहा, 'यह संसार रूपी नाटक की विचित्रता है,' यह सुनकर शुकराजकुमार बोलने लगा, मृगध्वज राजाने कहा, “धन्य आपके समान परोपकारी महात्मा लोगो कों! और पूछा, 'मुझे इस संसार से वैराग्य कब P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust