________________ 18 मगृध्वज का नगर प्रवेश करना, कमलमाला को पट्टरानी बनाना, पट्टरानी को शुभ स्वप्न आना, पुत्र जन्म होना, शुकराज नामकरन करना, उद्यान में राजा का आना, राजपुत्र शुकराज का यकायक मूर्छित होना, . शीतोपचार द्वारा शुद्धि में आना, शुद्धि में आने पर भी अवाक् होना और उसके लिये अनेक उपचार करने पर भी शुकराज अवाक् ही रहता है. प्रकरण 34 . . . . . . . . . . . . पृ. 31 से 49 शुकराज और राजा जितारि प्रजाके आग्रह से मृगध्वज राजा का कौमुदी महोत्सव के कारण उद्यान में जाना, उस वृक्ष को दूर से टालना और उस वृक्ष के निचे देवदुंदुभि नाद होना, सेवक द्वारा उस की खोज़ करने पर मालुम होता है की श्रीदत्तमुनिवर को वहाँ केवल झान प्राप्त हुआ है और देवों द्वारा केवल ज्ञान महोत्सव मनाया जा रहा है. पट्टरानी की प्रेरणा से केवली मुनिवर के पास जाना और केवली मुनिवर से शुकराज के विषय में प्रश्न पूछना; ज्ञानीमुमि द्वारा शुकराज का सविस्तार पूर्व भव कथन उस में जितारी राजा का जीवन, तीर्थ महिमा, सर्वश्रेष्ठ धर्म का ग्रहण, तीर्थ यात्रा के लिये दृढ प्रतिज्ञा, स्वप्न में गौमुख यक्ष का कथन, श्री सिद्धाचलजीकी स्थापना..जितारी राजा का देहान्त, हंसी-सारसी दोनों राणी की दीक्षा व स्वर्गगमन, शुक पक्षी को प्रतिबोध और अनशन व स्वर्ग गमन. ___केवली भगवान से प्रश्न व निर्णय और शुकराज द्वारा गुरुवंदना और बोलना. प्रकरण 35 * * * * * * * * * * * * पृ. 50 से 83 श्रीदत्त केवली का पूर्वचरित्र संसार की अपार लीला पर केवली भगवन्त श्रीदत्तमुनिवरने मृगध्वज राजा-शुकराज व सभा के आगे अपना रोमांचकारी जीवन वृत्तान्त P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust