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________________ . . श्री नेमि-अमृत-खान्ति सद् गुरुभ्यो नमः संवत् प्रर्वतक महाराजा विक्रम द्वितीयभाग का ट्रंक सार सर्ग आठवा पृष्ठ 1 से 222 ...................... प्रकरण 33 से 42 प्रकरण 33 . . . . . . . . . . . . . पृष्ठ 1 से 30 तीर्थ महिमा और शुक्रराज चरित्र ___महाराजा विक्रमादित्य के गुरुदेव पू. श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरीश्वरजी का सपरिवार अवती में पधारना, धर्मोपदेश करते हुए महातीर्थ श्री सिद्धाचलजी का महात्म्य फरमाना, श्री शत्रुजय नामके बारे में महाराजा द्वारा प्रश्न पूछना, प्रत्युत्तर देते सूरीश्वरजी अनेक रोमांचकारी प्रसंगो से भरपूर शुकराज की कथा सुनाते है, मृगध्वज का उद्यान में जाना, पोपट द्वारा गर्व खंडन और तोते के पीछे पीछे जाना, ऋषि के आश्रम में गांगलि ऋषि की पुत्री कमलमाला से मृगध्वज का लग्न, वृक्ष से वस्त्रअलंकार की वरसा होनी, अपने नगर प्रति वापिस लौटना, चन्द्रशेखर द्वारा नगर पर घेरा डालना, उसके समाचार जान कर महाराजा को परिताप होना. उतने में खुद के परिवार का यकायक आना और उन से मिलना, चन्द्रशेखर का भी वहां राजा के पास आना, मधुर शब्दों द्वारा कपटपूर्ण बोलना, और स्वस्थान जाना.. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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