SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 104 विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग श्री विमलाचल पर बावडी में हंस हुओ। उस हंस को तीर्थ का दर्शन होने से पूर्व भव का जाति स्मरण ज्ञानप्राप्त हुआ। इसी कारण वह अपने पांखों से जल लाकर श्री जिनेश्वर देव को स्नान कराता था तथा बन में से अपनी चोंच में सुन्दर 2 पुष्पों को लाकर श्री युगादीश जिनेश्वर का भाव पूर्वक पूजन करता था। इस प्रकार निरन्तर जिनेश्वर देव की पूजन करने के कारण वह हंस मर कर देव हुआ, वही देव इस समय हंस नामका आप का पुत्र है / मुनि से यह बात सुनकर मैं अपने शत्रु हंस को मारकर अपने वैर का बदला लुगा / इस प्रकार भाव को प्रगट करता हुआ क्रोध पूर्वक जब मैं वहां से चला तब श्रीदत्तमुनि ने मेरे क्रोध को शान्त करने के लिये अनेक प्रकार के वचन कहे, परन्तु मैं उनके उपदेश की अवज्ञा करके इस समय हंस के साथ युद्ध करने के लिये यहां आया हू। बलशाली आपके पुत्र हंस से युद्ध करता हुआ तत्काल हार गया है। इसलिये अब मैं वैर भाव को त्याग करके श्रीदत्त मुनि के समाप संसार रूपी समुद्र से शीघ्र तारण करने वाले दीक्षा व्रत की प्रहण करूगा / इसके बाद अत्यंत स्नेह से हंस को नमस्कार . करके सूर तत्काल व्रतग्रहण करने के लिये श्रीदत्त मुनि के समीप गया, शास्त्रों में कहा है 'विषय समूह कायर पुरुष को ही अपने अधीन में करता है, सत्पुरुष को नहीं / कारण कि जैसे मकड़ी का तन्तु मच्छर को ही बांधता है परन्तु गजेन्द्रको नहीं बांध सकता।' बहुत बड़े भाग्य से प्राणी में धर्म क्रिया करने की अभिलाषा उत्पन्न होती है किन्तु वह अभिलाषा फलवती होवे अर्थात धर्म किया जावे यह तो स्वर्ण में सुगन्धि जैसा सुमेल है। .. Jun Sun Aaradhak Trust P.P.AC.Gurnratnasuri M.S.
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy