________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 103 करता है, रौद्र ध्यान में मृत्यु होने पर नरक में जाता है, धर्म ध्यान में मृत्यु होने पर देवगति को प्राप्त होता है, उसे शुभ फल मिलता है / शुम्ल ध्यान में मृत्यु होने पर उसे मुक्ति प्राप्त होती है। इसलिये व्याधि का अंत करने वाले हितकर संसार से निस्तार करने वाले औषध की तरह श्रेष्ट शुक्ल ध्यान में ही मत्यु के लिये बुद्धिमानों को भावना करनी चाहिए / " इसके बाद वह सर्प आकर के क्रोध से उस मत्री को डस गया। मत्री उसके जहर से मरकर भयानक नरक को प्राप्त हो गया / रौद्र ध्यान परायण वह सर्प भी मरकर दुष्कर्म के योग से उसी भयंकर नरक को गया / नरक में गये दोनों जीव परस्पर सदा कलह करते हुए अत्यंत दुःख से दुःखी होकर समय को बिताने लगे। जिन पूजा के प्रभाव से चरक का सूर रूप में जन्म ___ चरक का जीव नरक से निकल कर लक्ष्मीपुर नाम के नगर में अत्यन्त मनोहर रूप वाला भीम नाम का धन श्रेष्ठी का पुत्र हुआ। उस जन्म में पवित्र श्रेष्ठ पुष्पों से भाव सहित श्री जिनेश्वरदेव की पूजा करने के कारण तुम सूर नामक वीरांगद राजा के पुत्र हुए हो। क्योंकि 'जो कुछ भाग्य में लिखा है उसका परिणाम लोगों को प्राप्त होता ही है / यह जानकर बुद्धिमान् लोग विपत्ति में भी कायर नहीं होते। उधरसिंह मंत्री भी नरक में अनेक महान् कष्टों को भोगकर P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust