________________ 102 विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग मिला है / प्रायः उसी समय में कोई भिल्ल वह रत्नकुडल उठा ले गया होगा।" सिंहमन्त्री द्वारा चरक सेवक को पीटा जाना ___ तुमने ही वह रत्नकुडल ले लिया होगा, ऐसा कहते हुए चरक को उस मन्त्री ने खुब पीटा। "सुख या दुःख किसी को कोई न देता है यह नियमित है, निज कर्म सूत्र में गुथा हुआ-फल को पाना नय निश्चित है।" - "क्योंकि सुख तथा दुःख का कोई देने वाला नहीं होता है। दूसरे मुझको सुख या दुःख देते हैं यह तो मन्द बुद्धि वाले ही सोचते हैं / “यह मैं करता हूं" इस प्रकार का व्यर्थ ही मनुष्यों में अभिमान है सब लोग अपने कर्म-सूत्र से ग्रथित हैं / " / ___ इसके बाद उस चरक को वहीं मूर्छित अवस्था में ही छोड़कर और लोगों के साथ पृथ्वी का अतिक्रमण करता हुआ सिंह मन्त्री भद्दिलापुरी में जा पहुंचा। इधर शीतल वायु आदि से अपने आप स्वस्थ शरीर होकर चरक अपने मन में विचारने लगा कि 'धन-सत्ता से वित मन्त्री का बार बार धिक्कार है / इस प्रकार रौद्र ध्यान करते हुए चरक प्यास से दुःखी होकर मृत्यु को प्राप्त हो गया / पुनः वही चरक भदिदुलापुरी के समीप वन में भयकर सपं हो गया, क्योंकि शास्त्र में फरमाया है 'आर्तध्यान में मरने से प्राणी पशुयोनिको प्राप्त escation P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust D