________________ ... विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग सैंतीसवां प्रकरण "काम पूर्ति हो धर्म से-धर्म सकल सुख हेत, रे मन ! मानो धर्म-परमारथ फल देत // " "काजल तजे न श्यामता मोती तजे न श्वेत, दुर्जन तजे न कुटिलता-सज्जन तजे न हेत // " गत प्रकरण के अन्दर सूर तथा हंस का युद्ध प्रसंग आया है / युद्ध भूमि में बेहोश होकर गिरे हुए शत्रु सूर पर भी हस. कुमार ने परम कृपा दिखाकर अपनी सज्जनता और कुलीनता का परिचय दिया। बाद में दोनों को परस्पर वैरभाव निवृत्त हुअा। अब आगे का हाल इस प्रकरण में लिखा जाता है। . यह अद्भुत कौतुक देखकर मृगध्वज ने सूर से पूछा कि आपने मेरे पुत्र से युद्ध क्यों किया ? श्रीदत्त केवली के द्वारा सूर के पूर्व जन्म का कथन .. तब सूर कहने लगा कि “एक समय सारंगपुर के उद्यान में श्रीदत्त नाम के केवली भगवंत पृथ्वी को अपने चरण कमल से पवित्र करते हुए आ पहुंचे / उस समय मैं अपने पिता के साथ मुनि को प्रणाम करने के लिए उद्यान में गया / उन ज्ञानी भगवंत ने मोक्ष सुख को देने वाली धर्म देशना लोगों को दी / 'धर्म धनार्थी' को धन देनेवाला, कामार्थी को काम देनेवाला, सौभाग्यार्थी को सौभाग्य देनेवाला, पुत्रार्थी को पुत्र देनेवाला, राज्यार्थी को P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust