________________ साहित्य प्रेमी मुनि निरञ्जनषिजय संयोजित नगर प्रवेश करवाया शुकराज ने आते ही विनय पूर्वक अपने माता पिता के चरण कमलों में प्रणाम किया / क्यों किः__ "जिससे धर्म वृद्धि को प्राप्त हो तथा बन्धु वर्ग यश एवं कुल, वृद्धि को प्राप्त हो. वही वास्तव में पिता का पुत्र है / दूसरे स्वछंदी (उछ खल ) तो शत्रु ही है / राजा मृगध्वज ने जिन मंदिर में स्नात्र पूजा आदि करके तथा अनेक प्रकार के दाने प्रदान के द्वारा पुत्र के आगमन की खुशी में उत्सव किया / क्यों कि 'देवपूजा, गुरू को उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, शास्त्राध्ययन और परोपकार ये आठ मनुष्य जन्म के फल हैं।' इसके बाद एक दिन राजा अपने पुत्र शुकराज और हंसराज के साथ उद्यान में आकर परिवार के साथ आनन्द विनोद कर रहे थे। इसी बीच में अकस्मात दूर में मनुष्यों का कोलाहल सुनकर उसके समाचार जानने के लिये राजा ने अपने एक सेवक को शीघ्र ही वहां भेजा। वह सेवक वहां औरगया अ वहां के समाचार जान कर राजा से आकर बराबर सुना दिये कि "सारंगपुर में वीरांगद नाम का ऐक राजा है / उसका पुत्र सूर आपके पुत्र हंस के साथ वैर भाव , धारण करता हुआ बहुत सेना के साथ उनसे युद्ध करने के लिये यहां आ रहा है।" * यै वद्धि नीयते धर्मो वन्धुवगः कुलं यशः / पितुः पुत्रारत एव स्युर्वैरिणः स्वैरिणः परे // 617. स.८ Jun Gun Aaradhak Trust": P.P.AC.Gunratnasturi M.S.