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________________ विक्रम चरित्र-द्वितीय भाग 68 तब राजा ने कहा कि राज्य तो मैं करता हूं फिर मेरे पुत्र के साथ वह वैर क्यों करता है ?' इतने में राजा के दोनों पुत्र भी उद्यान में से निकट आपहुचे। राजा दोनों पुत्रों से युद्ध के बारे में परस्पर विचार कर रहे थे / इतने में शत्रु की सेना में से एक सेवक आकर उनसे कहने लगा कि 'तुम्हारे पुत्र हंसराज से पूर्व जन्म में पराजित राजा सूर वैर भाव का स्मरण करता हुआ "द्वष नष्ट हो जाता जिसके, दर्शन से आनन्द लहे। पूर्व जन्म का मित्र बन्धु, वह है ऐसा बुध वर्ग कहे // '. महाराजा मृगध्वज पुत्र स्नेह के कारण और शुकराज भ्रातृ स्नेह के कारण सूर राजकुमार के साथ युद्ध करने को तैयार हुए तब हंसराज ने कहा कि 'इस राजकुमार सूर को मेरे साथ बैर है इसलिए मुझे ही युद्ध करने दी जिये।' हंस और सूर का परस्पर युद्ध ___ यह कह कर यमराज के तुल्य हंस राजकुमार रथ पर आरूढ़ होकर राजा सूर के साथ बाहु युद्ध करने लगा। इसके बाद हंसराज ने मृगध्वज आदि राजाओं के देखते देखते ही सूर के सब शस्त्रों को काट डाले / तब अत्यन्त ऋद्ध होकर सूर जब तब हंस को मारने के लिये उद्यत हुआ, तब तक हस ने सूर को पृथ्वी पर धर पटका / पुनः हंस ने गिरे हुए बेहोश सूर को बान्धव के समान शीघ्र ही सीतवायु आदि उपचारों के द्वारा सूर को स्वस्थ किया /
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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