________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग रक्रेश्वरी देवी के द्वारा माता को समाचार पहुंचाना__ यह बात सुनकर शुकराज की आंखों में आंसू भर आये और दुखित होकर शुकराज ने कहा कि "समीप में प्राप्त तीर्थ को प्रणाम किये बिना ही, मैं किस प्रकार पीछे लौट जाऊं ? क्योंकि विवेकी को चाहिये कि धर्म का अवसर प्राप्त होने पर उसमें विलम्ब न करे। जैसे बाहुबलि को एक रात बीत जाने पर तक्षशिला के उद्यान में आये हुए श्री ऋषभदेव प्रभु के दर्शन न हो सके / इसलिये हे देवी ! तुम मेरी माता को कहना कि तेरा पुत्र देवों की बन्दना करके शीघ्र ही आ जायेगा।" इस प्रकार चक्रेश्वरी देवी से कह कर शुकराज मित्र के साथ श्री अष्टापद तीर्थ में श्री जिनेश्वरदेवों को प्रणाम करने के लिये हर्ष पूर्वक पुनः वहाँ से चल दिया। - उधर चक्रेश्वरी देवी के द्वारा अपने प्यारे पुत्र की कुशलता का सन्देश सुनकर कमलमाला भी स्वस्थ हुई. शुकराज श्री जिनेश्वर देवों की वन्दना करके लौट आया। बाद में वायुवेगा तथा पद्मावती दोनों स्त्रियों के साथ विमान पर आरूढ़ होकर क्षितिप्रतिष्ठ नगर के उद्यान में आया। अपने प्यारे पुत्र का आगमन सुन कर उस के माता तथा पिता ने हर्षित हो नगर में . तोरण आदि बन्धवाये। शुकराज का अपने नगर में प्रवेश अत्यन्त प्रसन्नता से उत्सव पूर्वक शुभ मुहूत में शुकराज को P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust