________________ साहित्य प्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित .65 गांगलिऋषि के साथ गया परन्तु अभी तक उसका कोई समाचार मुझे नहीं मिला है, इसलिये ही मैं रूदन कर रही हूं।" देवी ने उत्तर दिया कि 'तुम्हारे पुत्र के कुशल समाचार जानकर तुमको शीघ्र कहूंगी।' इस प्रकार तुम्हारी मोता को आश्वासन देकर, तत्काल अवधिज्ञान से तुमको यहां जानकर आई हूँ। इस लिये तुम पीछे लौटकर, अपने नगर में जाकर, अपनी माताजी के चरणों में प्रणाम कर, अपने निर्मल चरित्रों से उसको प्रसन्न कर दो। "माता चरण प्रणाम ही, सब तीर्थों का ध्यान। बिना कष्ट तप जानिये, जल बिन स्नान समान // " क्योंकि माता के चरणों का सेवन करना बिना यात्रा के ही तीर्थ है, बिना देह कष्ट का तप है तथा बिना जल का स्नान है ! नीतिकार ने कहा है - "जिसने नौ मास तक गर्भ का वहन किया, प्रसव समय में अत्यन्त उत्कट कष्ट को सहन किया, पथ्य आहारों से स्नान आदि क्रियाओं से दूध पिलाना एवं रक्षा के अनेक उपायों से तथा विष्ठा मूत्र आदि मलिन पदार्थों से कष्ट प्राप्त कर के भी जिसने पुत्र को अनेक प्रकार से रक्षण किया, ऐसी एक माता ही स्तुति के योग्य है।" * ऊढो गर्भ, प्रसवसमये साढमत्युग्रशूलं, पथ्याहारैः स्नपनविधिभिः स्तन्यपानप्रयत्नैः / विष्ठा मूत्रप्रभ्रतिमलिनैः कष्टमासाद्य सद्य / स्त्रातः पुत्रः कथमपि यया स्तूयतां सैव माता // 606 / / स.८ P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust