________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरज्जनविजय संयोजित 62 ने आकाशचारी विद्या सिखी है, यह जानकर उन्हें अत्यन्त प्रसन्नता हुई, क्योंकि "सज्जन व्यक्ति दूसरे की लक्ष्मी को बढती हुई देखकर जैसे बढते हुए चद्रमा का देखकर समुद्र प्रसन्न होता है, ठीक वैसे ही प्रसन्न होते हैं।" __ इसके बाद गांगलि मुनि से प्रेम पूर्वक मिल कर शीघ्र ही वायुवेग तथा उन दोनों स्त्रियों के साथ उतम विमान पर आरूढ़ होकर शुकराज आकाश को उलंघन करता हुआ तथा अनेक नगर समुद्र पर्वत आदि को देखता हुआ चम्पापुरी में आ पहुँचा। विद्याधर के मुख से शुकराज का अपूर्व चरित्र सुनकर राजा 'अरिमर्दन' ने अत्यन्त आनन्दित होकर बहुत उत्तम उत्सव पूर्वक घोडे, हाथी, सुवर्ण आदि देकर शुकरराज का पद्मावती के साथ विवाह कर दिया / "श्री वीतराग भगवान के द्वारा बताया गया अहिंसा रूपी धर्म जिनके मन में स्थापित है उसके वश में सुर असुर, राजा, यक्ष, राक्षस, भूत आदि सब हो जाते हैं।" इसके बाद शुकराज पदमावती को वहीं मायरे में छोड़कर वायुवेग विद्याधर के साथ राजा से आज्ञा लेकर शाश्वत' चैत्यों का वन्दन करने के लिये वहां से चल दिया / तथा शाश्वत चैत्यों का वन्दन करता हुआ और अपने मित्र के साथ ग्राम, नगर, पर्वत आदि को देखता हुआ 'गगनवल्लभपुर' नगर में जा पहुंचा। वहां वायुवेग अपने माता पिता के आगे हर्ष पूर्वक बोला कि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. * Jun Gun Aaradhak Trust