________________ 64 ... विक्रम-चरित्र द्वतिय भाग "इस महापुरुष शुकराज ने मेरा बहुत बड़ा उपकार किया है।" इससे प्रसन्न होकर वायुवेग के . पिताने सुन्दर उत्सव पूर्वक अपनी वायुवेगा नाम की सुन्दर कन्या का भी विवाह शुकराज के साथ कर दिया। अष्टापद तीर्थ की यात्रा के लिये शुकराज का गमन * अपनी स्त्री वायुवेगा को मायरा में ही छोड़कर शुकरराज वायुवेग के साथ अष्टापद का माहात्म्य सुनकर जिनेश्वर देवों की वन्दना करने के लिये चल दिया पीछे शुकराज 2 इस प्रकार नाम ग्रहणपूर्वक बार बार पुकारती हुई किसी स्त्री को सुना / शुकराज ने पीछे घूमकर देखो तो "दिव्य आभूषणों से युक्त एक स्त्री उसकी ओर आरही है।" निकट आने पर राजकुमार ने पूछा कि तुम कौन हो ? कहां से यहां आई हो? इस प्रकार शुकराज के प्रश्न पूछने पर वह कहने लगीकि मैं 'जिनेश्वरदेवकी सेवा करने वाली चक्रेश्वरी नाम की देवी हूं, मैं सदा धर्मी जीवों के अनेक विघ्नों को नाश करने वाली हू', मैं गोमुख यक्ष के आदेश से इस समय श्रीपुण्डरीकगिरी की रक्षा करने के लिये चाली थी, चलते 2 मध्य मार्ग में जब मैं क्षितिप्रतिष्ठित नगर के ऊपर आई तब रोजमहल समीप के उद्यान में करूण स्वर से किसी स्त्री का रूदन सुनकर, वहां पर गई और उस स्त्री से. रूदन का कारण पूछा, तब उस स्त्री ने उत्तर दिया कि "शुकरराज नामका मेरा पुत्र P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust