________________ 12 विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ तत्पश्चात् वायुवेग विद्याधर को शुकराज ने पूछा कि तुमको आकाशगमन विद्या याद है या भूल गये ? तब वायुवेग ने कहा कि आकाशगमन विद्या मुझको याद तो है, परन्तु वह अभी कुछ भी कार्य नहीं कर रही है / शकराज को आकाशगामिनी विद्या की सिद्धि शुकराज ने कहा कि 'हे विद्याधर ! वह विद्या मुझको सुनाओ इसके बाद विद्याधर से कही हुई आकाशगमन की विद्या को लेकर जिनालय में जाकर श्री जिनेश्वर भगवान के आगे तप पूर्वक विद्या का जाप करने लगा। इस प्रकार आकाशगमन विद्या सिद्ध करके शुकराज ने वह विद्या पुनः विद्याधर को सिखा दी। इस प्रकार दोनों परस्पर उपकार के द्वारा आकाश चारी हो गये / ठीक ही कहा है कि देना लेना, गुप्त कहना और पूछना, भोजन करना तथा कराना ये छ प्रकार का प्रीति का लक्षण कहा गया है। "लेना देना पूछना गुप्त बताना भेद / खाना पीना परसपर मैत्री के छ भेद / / '' गांगलि ऋषि का तीर्थ यात्रा से लौटना कुछ दिनों के बाद विमलाचल पर्वत पर श्री जिनेश्वरदेव को प्रणाम करके प्रसन्नता पूर्वक गागलि ऋषि आ गये, तथा शुकगज P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust