________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरन्जनविजय संयोजित प्रणम किया। वहां पद्मावती को देखकर वायुवेग बोला कि मैं दुरात्मा होने के कारण ही इस कन्या का हरण किया था, / इस लिये कहा है कि. . "सर्प समान क र खल दल है, किन्तु सर्प से बढ़ कर खल है / मन्त्रौषधि वश सपं भी होता, खल संमुख सदुपाय भी रोता।" __ सर्प भी क्रूर होता है, और खल भी क्रूर होता है, उन दोनों में से खल व्यक्ति अति भयंकर क्र र है। सर्प.मंत्र तथा औषधि के वश में हो सकता है परन्तु खल व्यक्ति किसी भी उपाय से वश में नहीं होता है।' इसके बाद श्री जिनेश्वर की स्तुति तथा प्रणाम करके पद्मावती सहित वायुवेग को परोपकार कुशल शुकराज शीघ्र ही आश्रम में लाये तथा वह धात्री पद्मावती को देखकर जैसे चन्द्रमा को देख कर समुद्र प्रसन्न होता है उसी प्रकार प्रसन्न हुई / तथा शुकराज ने भोजनादि के द्वारा वायु वेग आदि तानों का सम्मान किया / क्योंकिः-- जल में शीतलता, दूसरों के भोजन में आदर मान, स्त्रियों मैं आज्ञा-पालन तथा मित्रों के सद वचन में ही उत्तम रस है। तथा प्रसन्न नेत्र, शुद्धपन, मधुर वाणी, और नत मस्तक आदि उत्तम गुणों वाले सज्जन पुरुष बिना वैभव के ही सन्मानित होते हैं। “सविनय सादर शत हंसी खुशी, निर्मल मन मीठी बाणी से / अतिथि जनों को वश में करते, सज्जन साञ्जलि पाणी से।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust