________________ 88 विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग Arrown-- श कराज का ऋषि के साथ आश्रम में जाना मंत्रियों का वचन सुनकर शुकगज माता-पिता के चरणों में प्रणाम करके सिंह के समान गांगलि ऋषि के साथ चल दिया। फिर गांगलि मुनि महाराजा को शुभ आशीर्वाद देकर शुक के साथ पृथ्वी का लंघन करते हुए अल्प समय में ही अपने आश्रम में आ पहुँचे / शुकराज श्रीआदिनाथ प्रभु को प्रणाम तथा स्तुति कर के उस आश्रम में ही रहने लगा। तथा वहां स्वर्ग और मुक्ति की लक्ष्मी को देने वाले बहुत से क्रिया अनुष्ठान किये। इस प्रकार शुकराज तीर्थ और आश्रम का संरक्षण यत्न पूर्वक करने लगा। गांगलि मुनि भी विमलाचल पर श्रीजिनेश्वर भगवान को प्रणाम करने के लिये चल दिये। "तीर्थ के मार्ग की धूली से लोग निष्पाप हो जाते हैं / तीर्थों में भ्रमण करने से संसार के भ्रमण से मुक्त होते हैं। तीर्थ में धन का व्यय करने से संसार में लोग स्थिर सम्पति वाले होते हैं, एवं तीर्थेश्वर की पूजा करने वाले जगत्पूज्य होते हैं।" * श्री तीर्थपान्थरजसोविरजीभवन्ति, तीर्थेषु बंभ्रमणतो न भवे भ्रमन्ति / तीर्थ व्ययादिह नराः स्थिरसंपदः स्युः, तीर्थेश्वरार्चनकृतो जगदर्चनीयाः ॥५५६।।स.८ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust