________________ : साहित्यप्रेमी मुनि निरजनविजय संयोजित हंसराज की बात सुनकर माता तथा पिता दोनों ने हर्ष पूर्वक कहाकि "हे पुत्र तुम धन्य हो ! क्योंकि तुम्हारा इस प्रकार का उत्तम वचन है / दीप से कुलदीपक पुत्र विलक्षण होते हैं। क्योंकि दीप वर्तमान वस्तु को ही प्रकाशित करता है, परन्तु कुलदीपक पुत्र अपने गुणों की उत्कृष्टता से बहुत पूर्व में हुए पूर्वजों को भी प्रकाशित करते हैं।" , राजा की यह बात सुनकर शुकराज ने कहा कि "हे तात ! मुझको आज्ञा दीजिये क्योंकि श्री विमलाचल तीर्थेश्वर को प्रणाम करने की इच्छा मुझे भी पहले से ही है / सच कहा कि 'आदि में सूक्ष्म, मध्यम में विशाल, पद पद पर विस्तार वाली तथा प्रवाह वाली नदियों के समान सज्जन पुरुषों की अभीलाषा कभी निष्फल नहीं होती। "जैसे गिरिवर से निकली नदी आगे बढत विशाल / होती है यों सुजन की इच्छा क्रमिक विशाल / " इसके बाद दोनों पुत्रों के विनय युक्त वचन सुनकर जब तक मन्त्रियों का मुख महाराजा देखते हैं, उस समय मंत्री कहने लगे कि "ऋषि मुनि याचना करने वाले हैं, आप देनेवाले हैं। जिन मन्दिर और आश्रम का रक्षण करना अपना कर्तव्य है / ऐसी स्थिति में यदि शुकराज रक्षण करने वाले होवें तो हम भी सहर्ष इसका पूर्ण अनुमोदन करते हैं।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust