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________________ विक्रम चरित्र-द्वितीय भाग... और मन्दिर की देखभाल कौन करेगा ?' तब वह यक्ष बोलाकि तुम हंसराज तथा शुकराज दोनों में से किसी एक दौहित्र को लाकर यहां रक्खो। ऐसा करने से तीर्थ सुरक्षित रहेगा / फिर उस यक्ष के प्रभाव से मैं बहुत थोडे समय में ही यहां आगया हूं। इसलिये हे मृगध्वज ! मुझको तुम शीघ्र कोई भी एक पुत्र समर्पित करो। राजा ने कहाकि "मेरे दोनों पुत्र अभी छोटे हैं / इसलिये मैं उन दोनों को वन में जाने के लिये कैसे आदेश दू।" परन्तु पुनः ऋषि मुनि की प्रार्थना पर विचार कर राजा वन में जाने के विषय में अपने दोनों बालकों को पूछने लगा। गांगलिऋषि के साथ हंसराज की जाने की अभिलाषा-- __तब हंसराज पिताजी के चरणों पर प्रणाम करके विनय पूर्वक बोला कि "हे पिताजी ! गांगलिक ऋषि को श्री शत्रुजय तीर्थ पर श्री जिनेश्वर देव को प्रणाम करने के लिये जाने की इच्छा है इसलिये मैं आपकी आज्ञा से आश्रम की रक्षा करने लिये जाऊंगा" क्योंकिः "धन्य लोग जग वे बड़ भागी जननी जनक वचन अनुरागी वे नर धन्य सकल बुध कह ही, गुरुवर. वचन सदा अनुसरही" - "वे पुरुष धन्य हैं जो माता पिता के वचनों को सादर स्वीकार करते हैं / संसार में वे भी विशेष धन्यवाद के पात्र हैं जो * पूज्य गुरुवरों के हितकारी वचनों का सदा आदर करते हैं।"* * "ते धन्या ये पितुर्मातुर्वाक्यं च वृण्वते मुदा।। ... ते च धन्यतमा लोके गुरूणां च वचोहितम् ।।५४४||प्त. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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