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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरन्जनविजय संयोजित .nawwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww द्वारपाल आकर निोदन करने लगा कि "हे राजन् ! आपके दर्शन की इच्छा से गांगलिऋषि द्वार पर आये हैं। यदि आपकी आज्ञा हो तो वह यहां आगे।" राजा की आज्ञा प्राप्त कर वह द्वारपाल तीन शिष्यों से युक्त जटाधारी गांगलिऋषि को वहां पर ले आया / आदर-सत्कार करने के अनन्तर आर्शीवाद प्राप्त करके राजा उन ऋषि श्रेष्ट को उच्च आसन पर बैठाकर पूछने लगा कि जिन मन्दिर आदि सब कुम्लल तो हैं ?' __ ऋषि ने उत्तर दिया कि “जब आप जैसे राजा पृथ्वी का पालन करने वाले इस पवित्र पृथ्वी पर विद्यमान हैं तो लोगों को किस प्रकार कोई विघ्न हो सकता है ? जैसे मेघ के बराबर वर्षा करते रहने पर क्या कहीं पर दुर्भिक्ष (अकाल) प्रकट होता है ?" ___ अपने पिता को आये हुए सुनकर कमल-माला भी आई और पिताजीके चरणों में प्रणाम करके एक स्थान पर खड़ी हो गई। तब राजा ने पूछा कि “आप किस प्रयोजन से अभी यहां आये हैं।" ___ ऋषि कहने लगे कि मेरे आगमन का क्या कारण है वह मुझ से सुनिये / एक दिन स्वप्न में मुझको गोमुख नामका यक्ष ' आकर कहने लगा कि “मैं प्रधान तीर्थ श्री विमलाचल पर के श्री . जिनेश्वर भगवान को प्रणाम करने के लिये जारहा हूँ; तुम भी आओ।" वक्ष के इस प्रकार कहने पर मैंने कहा कि 'इस आश्रम P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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