________________ '84 विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग प्रकरण छत्तीसवां चन्द्र शेखर "तरवर-सरवर-संतजन, चौथा वर्षे मेह, परमारथ के कारणे, चारों धरिया देह / " गत प्रकरण के अंदर श्रीदत्त केवली भगवंत ने महाराजा मृगध्वज को शुकराज का रोमांचकारी पूर्व भव इत्यादि वर्णन किया / उस वर्णन को सुनकर महाराजा अपने मन में बहुत ही आश्चर्य चकित हुए। महाराजा अपने मन में, इस संसार के अनोखे माया जाल पर सदा सोचते ही रहते थे, इस असार संसार से मेरा छुटकारा कब होगा ? यह दिल की चाहना थी। इस इच्छा की पूर्ति के लिये श्री दत्त केवली मुनि के वचन सदा याद रखते थे और धर्म भावना में रत रहे हुए न्याय नोति से प्रजा का पालन कर रहे थे। गांगलि ऋषि का राजसभा में आगमन-- - जब बह राजकुमार शुकराज दस वर्ष का हुआ तब कमल माला को पुन: एक दूसरा मनोहर पुत्र उत्पन्न हुआ। राजा मृगध्वज ने उसका जन्मोत्सव करके स्वप्न के अनुसार हर्ष पूर्वक "हंसराज" नाम रक्खा। इसके बाद दस वर्ष की अवस्था वाला हंसराज और शुकराज के साथ राजा जब सभा में बैठे थे। तब P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust