________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग चुका है। उसका नाश कोटि कल्प में भी नहीं हो सकता / किये हुए कर्म का शुभ या अशुभ फल जीव को अवश्य ही भोगना पड़ता है। परस्पर शुमा-याचना वहाँ पर बैठे हुए राजा ने यह सब बात सुनकर दिल में धम के बिना कल्याण नहीं हो सकता है, यह सोच कर उन मुनि से 'सम्यक्त्व मूल द्वादश व्रत' को अच्छे उत्सव के साथ ग्रहण किया। क्योंकि गृहस्थों के लिये पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, और चार शिक्षा व्रत, ये 12 व्रत मोक्ष दने वाले हैं। . बाजू में बैठे बानर रूपी व्यन्तर ने गुरु का उपदेश सुनकर अपनी पूर्व जन्म की स्त्री में अनुराग को त्याग किया और इस प्रकार क्रमशः श्रीदत्त, शंखदत्त, राजा और उस व्यन्तर, श्रीदत्त की कन्या तथा सोमश्री ने परस्पर क्षमा की याचना की / ___ इसके बाद स्वर्णरेखा वेश्याकर्म का त्योग करके जिनोपदेशित * धर्म का आचरण करती हुई स्वर्ग जायगी तथा क्रमशःमुक्ति को भी प्राप्त करेगी अन्य भी बहुत से संसारी लोकों ने ज्ञानीमुनि की धर्म देशना सुन तथा श्रीदत्त तथा शंखदत का वृतांत सुनकर, पाप बुद्धि को नष्ट कर, धर्म मार्ग में प्रवृति कर धर्म का मार्ग ग्रहण किया। श्रीदत्त और शंखदत्त ने जैन धर्म को स्वीकार किया तथा मुनि को प्रणाम करके हर्ष पूर्वक अपने 2 स्थान को गये / श्रीदत्तने आधे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust