________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरन्जनविजय संयोजित 76 मित्र को एक फलक (पाटिया ) प्राप्त हुआ। तथा उसी के अवलम्बन से सात दिन में वह सागर के तट पर आ पहुँचा। वहां तट पर उसको संवर नाम के उसके मामा मिल तथा कुशल समाचार पुछकर अपने घर ले गये। अन्नपानादि से अत्यन्त प्रसन्न होकर इसने मामा से पूछा कि स्वर्णकूल “यहां से कितनी दूर है / " मामा से उत्तर मिला कि "यहाँ से छतीस योजन दूरी पर है।'' इस प्रकार मामा से जानकर अपनी वस्तु तथा कन्या आदि का लेने के लिये यह यहां शिघ्र आया है / .. उन दोनों श्रीदत्त और शंखदत्त का पूर्व जन्म का बैरभाव जान - कर हित करने की बुध्दि से मुनि शंखदत्त से इस प्रकार कहने लगे क्योंकि:-"सज्जन व्यक्तियों का चित्त दया से श्रावृत रहता है / तथा वाणी अमृत से भी अधिक मधुर होती है और शरीर परोपकार करने में सतत तत्पर रहा करता है।" 'मुनि कहने लगे कि “हे शंखदत्त ! श्रीदत्त को तुमने पूर्व जन्म में मारने की इच्छा की थी, उस के बदले में तुमको मारने के लिये श्रीदत ने तुम्हें समुद्र में गिरा दिया था। इस प्रकार ' __घात प्रतिघात से तुम्हारे बैर भाव की शुद्धि हो चुकी है / अब तुम दोनों स्थिर प्रीति करलो / क्यों कि जो कर्म किया जा *कृपाकवचितं चेता, वचः पीयूषपेशलम् / परोपकार व्यापार, वपुः स्यात् सुकृतात्मनाम् / / 464 ॥स.८ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust