________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग "लक्ष्मी, स्त्री, माता, पिता, ये सब बार बार दूसरे जन्मों में प्राप्त हो सकते हैं परन्तु साधु संगति की प्राप्ति होना कठिन है। तब मुनि कहने लगे कि 'हे श्रीदत्त ! तुम खेद न करो तुम्हारा प्रिय मित्र अभी यहां आ मिलेगा। श्रीदत्त से शंखदत्त का पुनः मिलन ___ यह सुनकर नीदत्तजब तक अपने मन में आश्चय से विचार करता है तबतक शंखदत क्रोध से रक्त नेत्र किये हुए तत्काल वहां उपस्थित हो जाता है, तथा प्रथममुनि को विधि पूर्वक प्रणाम करके राजा के समीप बैठ जाता है / अत्यन्त क्रोध से भरा हुआ शंखदत्त को देखकर उसके क्रोध को शान्त करने के लिये मुनीश्वर ने इस प्रकार देशना दी कि "क्रोध प्रेम को नाश करता है, अभिमान विनय का नाश करने वाला है, माया मित्रता का नाश करती है; लोभ सर्वस्व का नाश कनने वाला होता हैसक्रोध जब देह रूपी , घर में प्रवेश करता है तब उसमें तीन प्रकार के विकार उत्पन्न होते हैं; तथा स्वयं भी तप्त होता है और दूसरे को भी ताप देता है। इस प्रकार वह अतीव हानिकारक होता है। ____ इस प्रकार अनेक उतम देशना से शांत हुए शंखदत को अपने समीपमें बैठाकर मुनीश्वरसे श्रीदत ने पूछा कि 'हे गुरो शंखदत ! किस प्रकार यहां आया ?' __ तब मुनीश्वर कहने लगे कि समुद्र में गिरता हुआ तुम्हारे है "कोहो पीइं पणासेइ माणो विरण्य णासणो / माया मित्ताणि णासेइ लोहो सव्वविणासणों" // 484 // 8 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust