________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग हो।' कहा है किः-- "मज्जन लोग कष्ट पाते हैं, दुर्जन लोग सुख भोगते हैं, पुत्र मरते हैं, पिता जीवित रहते हैं, दाता दरिद्र हो जाते हैं और कृपण धनी हो जाते हैं / हे लोगों ! देखो कलियुग का यह सब व्यवहार कैसा आश्चर्य जनक है। जनक है। ' ज्ञानी मुनि की यह बात सुनकर राजा आश्चय चकित हो गया और अपने सेवक को शीघ्र भेजकर श्रीदत्त को बुलवाया और आदर पूर्वक अपने समीप बैठाया। इसके बाद राजा ने पुतः प्रश्न किया कि 'श्रीदत्त को आपने सत्यवादी कैसे बताया ?' जब राजा मुनीश्वर से इस प्रकार पूछ रहाथा ठीक उसी समय में वानर स्वर्णरेखा को पीठ पर लेकर अकस्मात् वहां उपस्थित हो गया / वह सब के देखते ही मुनीश्वर को विधिपूर्वक प्रणाम करके तथो स्वर्णरेखा को पीठ पर से उतार कर देशना सुनने की इच्छा से लबको आश्चर्य चकित करता हुआ, उनके समीप बैठ गया, क्योंकि पशुपक्षि के योग्य जो बात तथा कार्य है वह बात तथा कार्य मनुष्यों में देखकर. तथा मनुष्य के कार्य 5 सीदन्ति सन्तो विलसन्त य सन्तः पुत्रा नियन्ते जनकश्चिरायुः। - दाता दरिद्रः कृपणो धनाढयः, ___पश्यन्तु लोकः कलि चेष्टितानि ॥४३६क्षास.. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust